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Teacher's Day | हमें शिक्षकों की आवश्यकता क्यों है? - शिक्षक दिवस |
हमें शिक्षकों की आवश्यकता क्यों है?
शिक्षकों का हमारे जीवन में उतना ही महत्त्व है जितना कि हमारे माता और पिता का। इसीलिए भारतीय संस्कृति में इन तीनो को ही परमात्मा का रूप अथवा प्रतिबिम्ब मन गया है।
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
भावार्थ :गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हि शंकर है; गुरु हि साक्षात् परब्रह्म है; उन सद्गुरु को प्रणाम ।
एक सत्य शिक्षक अपने शिष्य के लिए कई बलिदान भी देता है तो उसे निखारने के लिए कड़ी परीक्षा भी लेता है। शिक्षकों का महत्त्व इस छोटी कहानी से समझने का प्रयास करते है।
स्पष्टता का क्षण:
रत्नेश्वर, दुनिया के अग्रणी प्रेरक वक्ताओं और आत्म-सुधार तथा लक्ष्य-निर्धारण पर विचार करने वाले नेताओं में से एक हैं। हालाँकि, यह हमेशा उनके लिए ऐसा नहीं था। वे भारतवर्ष के सुदूर ग्रामीण स्थान में जन्मे, उन्होंने अपने पूरे जीवन को संघर्ष और कठिनाई के माध्यम से जाना।
अब, कहानी यह है कि अपने स्कूल के दिनों के दौरान उन्हें अपने समय के शैक्षिक बुद्धिजीवियों द्वारा "मानसिक रूप से विकलांग" करार दिया गया था और 6 वीं कक्षा से 5 वीं कक्षा में वापस रखा गया था। मामलों को बदतर बनाने के लिए, उनके पास एक जुड़वाँ भाई था जो असाधारण रूप से उज्ज्वल था जैसे उसे भगवान का कोई उपहार मिला था, और इस तरह के रत्नेश्वर को आमतौर पर अपने साथियों द्वारा "बुद्धु जुड़वाँ" कहा जाता था।
एक दिन एक शिक्षक ने उसे चाक बोर्ड पर समस्या हल करने के लिए कहा, लेकिन रत्नेश्वर ने मना कर दिया और कहा कि वह नहीं कर सकता। "बेशक तुम कर सकते हैं," शिक्षक ने उत्साहजनक ढंग से जवाब दिया। "बेटे, यहाँ आओ और मेरे लिए इस समस्या को हल करो।"
"लेकिन मैं नहीं कर सकता," रत्नेश्वर ने अपनी बात पर जोर देके कहा। और बोला "मैं मानसिक रूप से विकलांग हूं।" बाकी सभी बच्चे उसकी ये बात सुनकर जोर से हँसने लगे। उस समय, शिक्षक ने अपनी कुर्सी से उठते हुए बाहर कदम रखा और रत्नेश्वर को सीधे आंखों में देखा। "फिर कभी ऐसे मत कहना," उसने उसे दृढ़ता से कहा। "आपके बारे में किसी और की राय आपकी वास्तविकता नहीं है।" और न ही तुम्हे उसे वास्तविकता बनने देना चाहिए।
रत्नेश्वर ने उन शब्दों को कभी नहीं भुलाया, और अपना सारा जीवन अविश्वसनीय बाधाओं पर काबू पाने और जुनून और उत्साह के साथ अपने लक्ष्यों का पीछा कर उन्हें प्राप्त करने में बिताया।
सार:
भारतीय संस्कृति में ऐसे कई महान गुरु हुए है। जो अतुलनीय है। चाहे वो प्रसिद्ध गुरु द्रोण (अर्जुन) हो या गुरु शुक्राचार्य (राजा बलि), गुरु वाल्मीकि (लव-कुश) हो या गुरु विश्वामित्र (श्री राम) , गुरु चाणक्य (चन्द्रगुप्त मौर्य) हो या या गुरु रामकृष्णा (स्वामी विवेकानन्द), ऐसे अनगिनत महान गुरु हुए है।
जहाँ गुरु द्रोण ने अर्जुन को विश्व का महानतम धनुर्धर बनाने के लिए एकलव्य का अंगूठा मांग कर अपने ऊपर कलंक लिया। तो शुक्राचार्य ने राजबली के जीवन की रक्षा के लिए अपनी एक आँख खो दी। विश्वामित्र ने राम को ईश्वर का सम्मान दिलाया तो वाल्मीकि ने लव-कुश को अपरिजय बनाया चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को महान सम्राठ बनाया तो रामकृष्ण ने विवेकानन्द को महान दार्शनिक।
ऐसे असंख्य गुरु हुए है और हैं जो अपने शिष्य को नई नई ऊंचाइयों पर ले जाते है। लेकिन जो शिष्य ऊंचाइयों पर पहुँचते है उनमें केवल एक ही गुण होता है “अपने गुरु के प्रति सम्मान और समर्पण”, और यही एक सत्य गुरु को चाहिए होता है।
मैं अपने सभी शिक्षकों और गुरुओं को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने हर समय मेरा मार्गदर्शन किया। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद और शिक्षक दिवस की शुभकामनाएँ।
2 Comments
Nice Article!!
ReplyDeleteLovely story
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